मौसम कुछ सुहाना था,
रुत भी थोड़ी दीवानी थी |
सावन के धीमी फुहारों से
पर्वत हल्के हरे रंग के,
नूतन छद्मावरण में लिपटा था |
बदरी अँटती - कभी - छँटती
रवि-किरण भी लुकती - छुपती |
कभी किरण पर्वत पे सुनहला रंग चढ़ाती,
तो कभी बदरी शिखर को चूमना चाहती |
जल पत्थर से संगत कर,
कल-कल-कल खनक रहा था |
झरना मस्ती में
झन-झन-झन झनक रहा था |
पक्षियों की शोर भी घुल-मिल
मृदु संगीत सृजन रहा था |
मेरी हथेली पर रखे
हम संग - संग झरने तक पहुँचे |
सर्दी से थोड़ी ठिठुरन हुई
जलधार ने थोरा चोट किया |
तन भीगी , मन गीली
आँखों में जलन
कह-दूँ या ना असमंजस थी |
पंचतत्व से सक्ति मांग
सूखे गले , काँपते लब से
सहमे-सहमे
मैंने कहा, मुझे तुमसे प्रेम है
तुमसे प्रेम है....
प्रेम है..................