मंगलवार, 9 अगस्त 2011

मौसम कुछ सुहाना था,
रुत भी थोड़ी दीवानी थी |

सावन के धीमी फुहारों से 
पर्वत हल्के हरे रंग के,
नूतन छद्मावरण में लिपटा था |

बदरी अँटती - कभी - छँटती
रवि-किरण भी लुकती - छुपती |

कभी किरण पर्वत पे सुनहला रंग चढ़ाती,
तो कभी बदरी शिखर को चूमना चाहती |

जल पत्थर से संगत कर,
कल-कल-कल खनक रहा था |
झरना मस्ती में 
झन-झन-झन झनक रहा था |
पक्षियों की शोर भी घुल-मिल 
मृदु संगीत सृजन रहा था |

अपने हाँथ तुमने
मेरी हथेली पर रखे
हम संग - संग झरने तक पहुँचे |
सर्दी से थोड़ी ठिठुरन हुई
जलधार ने थोरा चोट किया |

तन भीगी , मन गीली 
आँखों में जलन
कह-दूँ  या ना असमंजस थी |

पंचतत्व से सक्ति मांग 
सूखे गले , काँपते लब से
सहमे-सहमे
मैंने कहा, मुझे तुमसे प्रेम है 
तुमसे प्रेम है....
प्रेम है..................

मंगलवार, 26 जुलाई 2011

.......!!!!!!!!!!.इज़हार-ऐ-ख़याल.!!!!!!!!!.........

माना की हमें इल्म नहीं, पर वो भी समझदार कहाँ
टूटी-फूटी जो कह पाये, उस पे भी उन्हें इख्तियार कहाँ |

गुरुवार, 21 जुलाई 2011

.......!!!! रात-जगा !!!!.........

कल सरेरात तुमको सोंचता रहा
पा फ़लक के सितारे आँकता रहा

सामनें छत पे आ जाए मेंरा चाँद
शब-ऐ-तर झरोखे से झाँकता रहा

आज फिर इस ग़ली से गुज़रेंगे वो
ब़ाब पे दस्तक़-ऐ-शोर चाहता रहा

दिल पे मरक़ूम सारी इबारतों को
होंटों से बारहा गुनगुनाता रहा

'क़ल्ब' बे राह-रवी से चलते रहा
दर-ब-दर की नसीहत फाँकता रहा

रविवार, 17 जुलाई 2011

......!!!! इंतेज़ारी !!!!.......

सूरतें हों वस्ल की यक, इंतेज़ारी में रहें
ता उम्र पस आक्बत तक, इंतेज़ारी में रहें

आँखें हैं अश्क़-आमेज़ और ज़बीं सज़दानशीं
बुत के मेहरबां होने तक, इंतेज़ारी में रहें

जो वो आयें बज़्म में इश्फ़ाकन चराग़ हो रौशन
वरना पुर-नम दीद सहर तक, इंतेज़ारी में रहें

ता उम्र इश्क़-ओ-ज़हान परख्ती है आज़ारों से
इम्तिहाँ के इन्तिहाँ तक, इंतेज़ारी में रहें

वर्क़-दर-वरक़ सुनाया 'क़ल्ब' दिले-रुदाद
इक़रार-ऐ-इज़हार तक, इंतेज़ारी में रहें

गुरुवार, 26 मई 2011

मेहशूस होता है कुछ ऐसा , 
छुप के बैठा है कोई , दिल में,
हर - इक धड़कन पे दस्तक देता हुआ |

हर - इक जुंबिश पे उठती है ,
दिल में हजारन मीठी कशक,
चाक - ए - ज़िगर करता हुआ |

हर दस्तक पे बावरा मन ,
लगाये है दौर मीलों की ,
दस्तकीं को खोजता हुआ |

भागते थक चूका अब ,
न आजमा और ,
सामने आ अब्र से बरसता हुआ |

सोमवार, 14 फ़रवरी 2011

valentine day special

है कुबूल ! इश्क में फ़ना होना , बेवफाई कभी गवारा नहीं |
जैसे साहिल पे है फ़ना मौज , सागर का आगोश प्यारा नहीं ||

जैसे सहर से मिलती सब्नम , शबे-हिज्र  के बाद |
बस पल -दो -पल के लिए , चाँद को रहगुजर बनाया नहीं ||

जैसे जिस्म कोआती है नींद , मौत के दामन में |
ता उम्र क़ोसिस की , ज़ीस्त ने कभी अपनाया नहीं ||

स्वदेसी

बुधवार, 9 फ़रवरी 2011

इस जीवन को ............... ........... ....... .... ... .. .


    इस जीवन को हमने, जी भर कर देखा  |

    आकांक्षाओं से पूरित ,
    कल्पनाओं के पर लगाये ,
    उन्मुक्त गगन में विहरते देखा ||  इस जीवन  ०--


    कभी, निज उलझन से बोझल !
    श्रांत !
    शांति पाने को ,
    एक गुहा को तरसते देखा ||  इस जीवन  ०--


    रस पी ,मतवाले भ्रमरे सा ,
    प्रेम की अथाह लहर पर ,
    कभी मस्ती में 
    हिचकोले खाते देखा ||  इस जीवन  ०--


    कभी विह्वल , ज्वलंत !
    जलने से उठे धुँए को ,
    ह्रदय से निकल ,
    आँखों में उमड़
    मन्द-मन्द बरसते देखा ||  इस जीवन  ०--


    सत्य-असत्य का भार उठाए ,
    पाप-पुन्य के भवंर में फसे ,
    कुछ पाने-खो जाने को ,
    मृगतृष्णा में भटकते देखा ||  इस जीवन  ०--


    कभी निष्फल हो जायें  तो ,
    निराशा के सागर में डूबे ,
    धैर्य और साहस को 
    आशा के पूल बँधाते देखा ||  इस जीवन  ०--


    गहर काल के अँधियाले में ,
    ईक दिन लुप्त हो जाना है ,
    तो भी इस जीवन को ,
    नित-नव-कुसमित-पुष्पित होते देखा ||


    इस जीवन को हमने, जी भर कर देखा  |

   ..........     .......     .....    ...   ..  .     

    स्वदेसी