सूरतें हों वस्ल की यक, इंतेज़ारी में रहें
ता उम्र पस आक्बत तक, इंतेज़ारी में रहें
आँखें हैं अश्क़-आमेज़ और ज़बीं सज़दानशीं
बुत के मेहरबां होने तक, इंतेज़ारी में रहें
जो वो आयें बज़्म में इश्फ़ाकन चराग़ हो रौशन
वरना पुर-नम दीद सहर तक, इंतेज़ारी में रहें
ता उम्र इश्क़-ओ-ज़हान परख्ती है आज़ारों से
इम्तिहाँ के इन्तिहाँ तक, इंतेज़ारी में रहें
वर्क़-दर-वरक़ सुनाया 'क़ल्ब' दिले-रुदाद
इक़रार-ऐ-इज़हार तक, इंतेज़ारी में रहें
ता उम्र पस आक्बत तक, इंतेज़ारी में रहें
आँखें हैं अश्क़-आमेज़ और ज़बीं सज़दानशीं
बुत के मेहरबां होने तक, इंतेज़ारी में रहें
जो वो आयें बज़्म में इश्फ़ाकन चराग़ हो रौशन
वरना पुर-नम दीद सहर तक, इंतेज़ारी में रहें
ता उम्र इश्क़-ओ-ज़हान परख्ती है आज़ारों से
इम्तिहाँ के इन्तिहाँ तक, इंतेज़ारी में रहें
वर्क़-दर-वरक़ सुनाया 'क़ल्ब' दिले-रुदाद
इक़रार-ऐ-इज़हार तक, इंतेज़ारी में रहें
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