है कुबूल ! इश्क में फ़ना होना , बेवफाई कभी गवारा नहीं |
जैसे साहिल पे है फ़ना मौज , सागर का आगोश प्यारा नहीं ||
जैसे सहर से मिलती सब्नम , शबे-हिज्र के बाद |
बस पल -दो -पल के लिए , चाँद को रहगुजर बनाया नहीं ||
जैसे जिस्म कोआती है नींद , मौत के दामन में |
ता उम्र क़ोसिस की , ज़ीस्त ने कभी अपनाया नहीं ||
स्वदेसी
जैसे साहिल पे है फ़ना मौज , सागर का आगोश प्यारा नहीं ||
जैसे सहर से मिलती सब्नम , शबे-हिज्र के बाद |
बस पल -दो -पल के लिए , चाँद को रहगुजर बनाया नहीं ||
जैसे जिस्म कोआती है नींद , मौत के दामन में |
ता उम्र क़ोसिस की , ज़ीस्त ने कभी अपनाया नहीं ||
स्वदेसी