बुधवार, 9 फ़रवरी 2011

इस जीवन को ............... ........... ....... .... ... .. .


    इस जीवन को हमने, जी भर कर देखा  |

    आकांक्षाओं से पूरित ,
    कल्पनाओं के पर लगाये ,
    उन्मुक्त गगन में विहरते देखा ||  इस जीवन  ०--


    कभी, निज उलझन से बोझल !
    श्रांत !
    शांति पाने को ,
    एक गुहा को तरसते देखा ||  इस जीवन  ०--


    रस पी ,मतवाले भ्रमरे सा ,
    प्रेम की अथाह लहर पर ,
    कभी मस्ती में 
    हिचकोले खाते देखा ||  इस जीवन  ०--


    कभी विह्वल , ज्वलंत !
    जलने से उठे धुँए को ,
    ह्रदय से निकल ,
    आँखों में उमड़
    मन्द-मन्द बरसते देखा ||  इस जीवन  ०--


    सत्य-असत्य का भार उठाए ,
    पाप-पुन्य के भवंर में फसे ,
    कुछ पाने-खो जाने को ,
    मृगतृष्णा में भटकते देखा ||  इस जीवन  ०--


    कभी निष्फल हो जायें  तो ,
    निराशा के सागर में डूबे ,
    धैर्य और साहस को 
    आशा के पूल बँधाते देखा ||  इस जीवन  ०--


    गहर काल के अँधियाले में ,
    ईक दिन लुप्त हो जाना है ,
    तो भी इस जीवन को ,
    नित-नव-कुसमित-पुष्पित होते देखा ||


    इस जीवन को हमने, जी भर कर देखा  |

   ..........     .......     .....    ...   ..  .     

    स्वदेसी 

कोई टिप्पणी नहीं:

एक टिप्पणी भेजें