इस जीवन को हमने, जी भर कर देखा | आकांक्षाओं से पूरित , कल्पनाओं के पर लगाये , उन्मुक्त गगन में विहरते देखा || इस जीवन ०-- कभी, निज उलझन से बोझल ! श्रांत ! शांति पाने को , एक गुहा को तरसते देखा || इस जीवन ०-- रस पी ,मतवाले भ्रमरे सा , प्रेम की अथाह लहर पर , कभी मस्ती में हिचकोले खाते देखा || इस जीवन ०-- कभी विह्वल , ज्वलंत ! जलने से उठे धुँए को , ह्रदय से निकल , आँखों में उमड़ मन्द-मन्द बरसते देखा || इस जीवन ०-- सत्य-असत्य का भार उठाए , पाप-पुन्य के भवंर में फसे , कुछ पाने-खो जाने को , मृगतृष्णा में भटकते देखा || इस जीवन ०-- कभी निष्फल हो जायें तो , निराशा के सागर में डूबे , धैर्य और साहस को आशा के पूल बँधाते देखा || इस जीवन ०-- गहर काल के अँधियाले में , ईक दिन लुप्त हो जाना है , तो भी इस जीवन को , नित-नव-कुसमित-पुष्पित होते देखा || इस जीवन को हमने, जी भर कर देखा | .......... ....... ..... ... .. . स्वदेसी
बुधवार, 9 फ़रवरी 2011
इस जीवन को ............... ........... ....... .... ... .. .
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