गुरुवार, 21 जुलाई 2011

.......!!!! रात-जगा !!!!.........

कल सरेरात तुमको सोंचता रहा
पा फ़लक के सितारे आँकता रहा

सामनें छत पे आ जाए मेंरा चाँद
शब-ऐ-तर झरोखे से झाँकता रहा

आज फिर इस ग़ली से गुज़रेंगे वो
ब़ाब पे दस्तक़-ऐ-शोर चाहता रहा

दिल पे मरक़ूम सारी इबारतों को
होंटों से बारहा गुनगुनाता रहा

'क़ल्ब' बे राह-रवी से चलते रहा
दर-ब-दर की नसीहत फाँकता रहा

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