कल सरेरात तुमको सोंचता रहा
पा फ़लक के सितारे आँकता रहा सामनें छत पे आ जाए मेंरा चाँद
शब-ऐ-तर झरोखे से झाँकता रहा
आज फिर इस ग़ली से गुज़रेंगे वो
ब़ाब पे दस्तक़-ऐ-शोर चाहता रहा
दिल पे मरक़ूम सारी इबारतों को
होंटों से बारहा गुनगुनाता रहा
'क़ल्ब' बे राह-रवी से चलते रहा
दर-ब-दर की नसीहत फाँकता रहा
वाह क्या बात है !
जवाब देंहटाएंबहुत खूब !!